कविता - ज़िंदगी
कविता - ज़िंदगी
एक अजीब सी
दौड़ हैं ये ज़िंदगी
कभी हँसते हँसते
गुजर जाती हैं ये ज़िंदगी
कभी रोते रोते
छोड़ जाती हैं ये ज़िंदगी
कितनी अजीब है
खट्टा मीठा फलसफा हैं ये ज़िंदगी
कभी सुख में कभी दुःख में
बस अल्पविराम छोड़ जाती हैं ये ज़िंदगी
एक सुबह शाम सी
सुख चैन पल भर आती हैं ये ज़िंदगी
कभी वक्त आगे ले जाती हैं
कभी वक्त पीछे छोड़ जाती हैं ये ज़िंदगी
जीवन की भागदौड़ में
वक्त के साथ चलती हैं ये ज़िंदगी
कभी पल भर की घड़ी में
फरेब कर जाती हैं ये ज़िंदगी
कभी मुस्कुराए, हंसती खेलती
ही सुबह हो जाती हैं ये ज़िंदगी
कई बार बिना मुस्कुराए
ही शाम हो जाती हैं ये ज़िंदगी
प्यार की डोर सजाती
दिल को दिल से मिलाती हैं ये ज़िंदगी
कभी नफ़रत की डोली सजाएं
दो पल में प्यार की डोर तोड़ जाती हैं ये ज़िंदगी
मीठे बोल, अच्छे व्यवहार से
रिश्ते बनाती हैं ये ज़िंदगी
कभी कड़वाहट घोल
रिश्ते तोड़ जाती हैं ये ज़िंदगी
