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vinod mohabe

Abstract

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पिता की गाथा

पिता की गाथा

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9साल बच्चे की राजस्थान में पानी के लीये जान

देखो कोई मेरी जान से प्यारी दौलत लूट गया हैं

मेरा छोटासा परिंदा देखो मुझसे रूठ गया हैं


देखो कोई तो बुलवाओ तारीखदानों को 

कोई तो बुलवाओ अखबारनवीसो को

लिख डालो कोई तो मेरे बयानों को

फाशी दो दोषी हत्यारोको


देखो मेरी बुढ़ापे की लाठी टूट गई है

मेरा छोटासा परिंदा देखो मुझसे रूठ गया हैं


देखो प्यास से सूख गई हैं उसकी आतें

सांसे फंसी है अंतडीयों में

कोई तो बुलवाओ डाक्टरों को

कोई तो उठाओ मेरे जिगर के टुकड़े को


मेरे बुलाने पर भी एक न उसने मानी

देखो सो रहा हैं सुनकर मेरी दर्द भरी कहानी

किसी के हाथों कोई संदेश तो भिजवाओ

मेरे छोटेसे परिंदे को कोई तो बुलाओ


मेरा छोटासा परिंदा कोई कोने में बैठ रो रहा हैं

लगता हैं जैसे कहीं खो गया है

कोई तो उसकी आवाज़ सुन लो

जाव कोई तो उसे ढूंढ लाओ


बस आवाज़ मत करो शायद

गहरी नींद में सो रहा है

रो - रो कर चेहरा सूक गया हैं

मेरा तन, मन सुध-बुध खो रहा हैं


देखो आंखों से आंसू का झरना बंद हो गया हैं

नदी का पानी भी सूक गया हैं

देखो कोई मेरी जान से प्यारी दौलत लूट गया हैं

मेरा छोटा सा परिंदा देखो मुझसे रूठ गया हैं।


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