"क्रश"
"क्रश"
जब से उसको देखा
मानों सब कुछ थम सा गया,
मेरी धड़कनों पर जरा भी मेरा ज़ोर ना चला,
जब वह मुस्कुराती है मानों मेरे अंदर
तितलियां पंख फड़ फड़ाती हैं,
उसकी मीठी सी बोली बार-बार
सुनने को दिल करता है,
उसका चेहरा ना मेरी निगाहों से हटता है,
वो ना होती है जब मेरे आस पास तो
उसकी मूरत बना लेता हूं,
इस चमक-दमक के दौर में मैं उसकी
सादगी भरी सूरत में खो जाता हूं।
जब पता चला कि वह
तो मेरी पड़ोसी है,
तो घर के नीचे मैं उसको देखने
के लिए उसका इंतजार करता हूं,
उसके आते ही मैं कहीं छुप सा जाता हूं,
कोशिश करता हूं उसके सामने जाने की
पर डर सा लगता है, उसके सामने
जाने की बात से ही दिल की धड़कनों का
यह शोर और कांपते मेरे हाथ पैर
मुझे कमजोर सा बना देता हैं,
उसके सामने जाने की हिम्मत
को फिर कम कर देते हैं।
ना जाने कैसा मेरा उससे रिश्ता बन गया था,
शायद उस अजनबी से मेरा
क्रश वाला बंधन बंध गया था।
उसके बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है,
सोचा था कि उससे बात करूंगा
पर वह बात अधूरी रह गई,
एक दिन मेरी क्रश न जाने कहां चली गई,
उसके जाने के बाद भी मैं हर
रोज घर के नीचे उसका इंतजार करता हूं,
उसके जाने के बाद भी जैसे वह मेरे पास ही है,
मेरे दिल में मेरे मन में उसकी एक मूरत बन गई है,
आंखें बंद करके बस उसमें ही खो जाता हूं,
और बस उसकी मुस्कुराहट
और उसकी मीठी सी बोली को याद करता हूं।
उसके जाने के बाद भी मैं इस
क्रश वाले बंधन को आज भी निभाता हूं।
