प्रकृति
प्रकृति
वक़्त और हालात अब साथ नहीं हैं,
इस महामारी में सबका
जीवन मानों थम सा गया है,
इंसान को भी शौक था
बेजुबानों को कैद करने का,
बेजुबानों का घर,जंगलों को नष्ट कर
अपने स्वार्थ में जीने का,
ना किसी के पास वक़्त था अपनों के लिए,
बस जीवन जीये जा रहे थे सिर्फ़ कमाने के लिए,
आज सब वक़्त से हारे हैं,
इस महामारी की चपेट में आए हर मुसाफ़िर हैं,
शायद कुदरत का दण्ड है ये,
जो दिए हैं दर्द इंसानों ने उसका
प्रकृति प्रायश्चित करवाएगी,
इस महामारी में हमको
इंसानियत का एहसास और
जीवन जीने का महत्व सिखलाएगा।