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Niharika Chaudhary

Abstract

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Niharika Chaudhary

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बेईमान मौसम

बेईमान मौसम

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घर से निकली थी मैं

किसी ज़रूरी काम से,

खुश थी मैं क्योंकि

मौसम भी था अच्छे अंदाज़ में।


क्योंकि ना था कोई ज़रिया

जिससे जा पाऊँ अपने मुकाम पे,

सिवाए उम्मीद के कि

चलो ये मौसम तो है साथ में।


कुछ दूर चलते ही चलने लगी सरसरी

हवाएँ मानों जैसे रोक रही हों जानें से,

फिर बी थी उम्मीद और आशा की किरण 

फ़िर चल दिए इसी उम्मीद के साथ में।


कुछ दूर चलते ही गरजने लगे बादल भी 

और होने लगी बूँदा बाँदी

और शुरू हो गयी रिम झिम बारिश।


कुछ करती में 

इससे पहले ही बुझा दी

इसने मेरी उम्मीद की किरण।

वो माटी के पुतले 

वो माटी के पुतले 

जिनको ले जा रही थी साथ में 

चल दिए अब मुझे छोड़ पानी की चाहत में।


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