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Niharika Chaudhary

Abstract

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Niharika Chaudhary

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दोस्ती

दोस्ती

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ना जाने कहां खो गया वो,

जो खुद को मेरा अपना मानता था,

ना जाने कहां खो गया वो,

जो हमारे रिश्ते को एक नाम "दोस्ती" दे गया,

ना जाने कहां खो गया वो दोस्त,


जो मुश्किल समय में मुझे सहारा और

हर परिस्थिति में मेरे साथ होता था,

थोड़ी सी नोकझोक के बाद,

चल ना बहुत हुआ अब ख़तम करते हैं

ऐसा कहकर सीने से लग जाता था,

मैं चाहें कितना भी परेशान क्यों ना हूं ,


कभी अपने बेकार से जोक्स सुनाकर,

तो कभी अजीब सकल बनाकर,

कैसे भी मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आता था,

जब मैं दूसरे कपल्स को देखकर निराश हो जाता था,

मैं हूं ना तेरी गर्लफ्रेंड ये कहकर फिर वो मुझे हँसाता था,


ना जाने कहां गया वो दोस्त,

जिसके लिए दोस्ती से बढ़कर कुछ ना था,

मेरे बीमार होने पर जो अपना सारा काम

छोड़कर मुझे देखने आजाया करता था,

ना जाने कहां खो गया वो दोस्त,

जिसको सबसे ज्यादा अपनी दोस्ती पर भरोसा था,


एक दिन भी एक दूसरे को ना देखें तो रह नहीं पाते थे,

जिसके साथ हम ज्यादा समय बिताया करते थे,

पूरे दिन अगर साथ भी हों फिर घर पहुंचकर

उसी को फोन किया करते थे,

तू पहुंच गया ना यार !

किसीसे कोई झगड़ा तो नहीं हुआ

ये जानने के बाद ही कुछ और काम किया करते थे,


ना जाने कहां गया वो दोस्त,

जो बात किसी से भी बताने में हम झिझकते थे,

लेकिन सिर्फ़ एक उसको बताए बिना रह नहीं पाते थे,

जो हमारे चेहरे पर झूठी मुस्कर के पीछे छिपी

परेशानी को आसानी से समझ जाया करता था,

चल अब बता ना ?

और अपनी हर परेशानी बताकर

हम मन हल्का कर लिया करते थे।


ना जाने कहां खो गया अपना वो दोस्त,

जब भी पापा से डांट पड़ती थी,

अंकल मेरी वजह से घर आने में देरी हो गई ये

कहकर सारा इल्ज़ाम वो ख़ुद पर ले लिया करता था,

मेरे हर सुख दुःख में जो हर पल मेरे साथ रहता था,

जिसके साथ मुझे दोस्ती का सही मतलब समझ आया,

ना जाने कहां खो गया वो दोस्त !


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