नारी व्यथा
नारी व्यथा
ऐसी क्या गलती की थी मैंने,
जो ये मेरे साथ हुआ
आज सुबह ही तो घर से निकलते
वक्त माँ ने दी थी दुआ
ये क्या हुआ और क्यूँँ हुआ।
ऐसा क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा,
जो तुमने मुझे ऐसे छुआ मुझे छूते वक्त
तुम्हें गलती का एहसास भी न हुआ ?
ये क्या हुआ और क्यूँँ हुआ…
इतना भी मत गिरो कि
आखिरी वक्त पे तुम्हें
कम पड़ जाए दवा और दुआ
पर तुमसे लड़ने के लिए
कहाँ से लाऊँ मैं गवाह
ये क्या हुआ और क्यूँँ हुआ…
तुम कभी सोच भी न सकोगे,
कि कितना दर्द मुझे हुआ
इतना सब करने के बाद तुमने
मुझे जिन्दा भी न रहने दिया
ये क्या हुआ और क्यूँँ हुआ…
और वैसे भी, जिन्दा रहना
किसे हासिल हुआ
कभी किसी को मार मार कर तो
कभी जिन्दा जला दिया
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
फिर भी चलो, कोई इन सबसे
बच भी गयी, किसीको
ये मौका भी मिला
पर तुम क्या जानो, लोगो की
बातों ने उसका मौत से
बत्तर हाल जो किया
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
मेरी क्या, बहुत लोगों की
लगी तुम्हें बद्दुआ
पर शायद उसका
कोई असर नहीं हुआ
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
सजा के नाम पर, तुम्हें मिली
बस चंद दिनों तक जेल की हवा
पर इस सजा से तुम्हारी
रूह को कोई दर्द न हुआ
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
मैं कहती हु, इनको चाहे फाँसी दो,
चाहे खिलाओ जितनी भी जेल की हवा
बस मेरे लिए एक ही काम करना,
अगर मेरा दर्द तुम्हें महसूस हुआ
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
काट दो उसका वो हिस्सा,
अगर जुर्म साबित हुआ
और यही करो हर बार,
अगर किसी ने कुछ किया
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ…
उसका ये हश्र करते वक्त,
बुला लो लोगों की सभा
ताकि वो कोई बलिक हो या
नाबालिक, उसकी जिंदगी हो तबाह
ये क्या हुआ और क्यूँ हुआ..।
