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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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चमत्कार देख कर रहे नमस्कार

चमत्कार देख कर रहे नमस्कार

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चमत्कार को करती दुनिया नमस्कार है

व्यर्थ नही देता कोई किसी को उपहार है

भगवान से कर रखा आजकल करार है

बिना मतलब,न चढ़ाता कोई फूल हार है।


अमीर के हो रहे हजारों मित्र कलाकार है

गरीब से दोस्ती को कोई न हो रहा तैयार है

चमत्कार को करती दुनिया नमस्कार है

बिन स्वार्थ न रखता कोई भी व्यवहार है।


नेकी का हो गया आजकल बड़ा ह्रास है

स्वार्थ का चढ़ा लोगो को बहुत बुखार है

स्वार्थता की बह रही आजकल बयार है

मतलबी को मिल रहे बहुत पुरस्कार है।


चमत्कार को करती दुनिया नमस्कार है

ईमानदारों को मिल रही बड़ी दुत्कार है

आजकल बेईमान बन गये समझदार है

उजालों को जला रहे आज अंधकार है।


याद रख साखी जिसके हृदय विकार है

पाता नही वो परमात्मा का कोई प्यार है

चाहे दौलत मिल भी जाये उन्हें बेसुमार है

उनका मनुष्य जीवन हो जाता बेकार है।


जल्द करोड़पति होने का चढ़ा ऐसा बुखार है

चमत्कार होने की उम्मीद करता बार-बार है

ज्योतिषी, लॉटरी के अपनाता वो हथियार है

अंत में होता वो तो बड़े धोखे का शिकार है।


पर ऐसे लोगो की बढ़ रही आज तादाद है

चमत्कार देखकर कर रहे जो नमस्कार है

आंखों में पड़ा उनके भ्रम का काला तार है

वो हो रहे दिखावा जेल में यूँही गिरफ्तार है।


भरे सावन में भी रहता सूखा संसार है

जिसके माथे पे होता दिखावे का भार है

वो ताकता रह जाता है, मंजिल सितार है

जो तड़क-भड़क देख करता नमस्कार है।


चमत्कार बजाय कर्म मे करता विश्वास है

वही जग में बनता एक सफल गीतकार है

उसकी तो वीराने मे भी आ जाती बहार है

जो एक चंदन जैसा बनता कलमकार है।


उसकी वाणी असत्य पे ऐसे करती प्रहार है

जैसे उसके मुख से निकल रही तलवार है

लालच के लिये नही टपकाता कभी लार है

वो भाग्य बजाय श्रम पर करता विश्वास है।


उसकी ही होती दुनिया मे जय-जयकार है

जो बातों के बजाय काम का कलाकार है

वो चमत्कार देखकर न करता नमस्कार है

वो कर्म, सच्ची नियत से जीतता संसार है।


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