चारदीवारी
चारदीवारी
इस चारदीवारी में में कैद हो गई,
अपने सपनों को मैं भूल ही गई।
बाहर परिंदों को देखकर मेरा भी जी ललचाता है,
बाहर निकल कर मैं भी उडूं मन में यह बात आता है।
काश निकल पाती मैं इस कैद से,
जी लेती मैं अपने सपनों को फिर से।
जिस दिन मैं यहां से निकल जाऊंगी,
अपने पैरों पर खड़ी हो कर आऊंगी।
ना जाने कब यह समय आएगा,
एक बार फिर से मेरा सपना पूरा हो जाएगा।