जब तुम समझदार हो जाओगे
जब तुम समझदार हो जाओगे
ढ़क ले कितना भी तन को नजरों में वासना रहेगी
नारी के शरीर की भूखी इन मर्दों की निगाह रहेगी
तन को ढ़कने वाला कपड़ा क्यों ना इनको सुहाता
क्यों हमें निर्वस्त्र करने का हर मर्द ख्याल चलाता
चैन की ज़िन्दगी जीने का नारी को नहीं अधिकार
फर्क ना पड़ता मर्दों को चाहे औरत रोए जाऱ जाऱ
मर्यादाओं की कई बेड़ियाँ पैरों में बैठी हूँ डालकर
हर हालात में रखना पड़ता खुद को मुझे ढ़ालकर
अपनी माँग में सिन्दूर भरकर तुझको मैं समझाती
अमानत हूँ किसी की ये बात समझ तुझे ना आती
फिर भी मेरे जिस्म को तूँ किसलिए रौंदना चाहता
मेरी अस्मत को तूँ किसलिए बर्बाद करना चाहता
तेरी बदनीयती के कारण कब तक सताई जाऊंगी
कब मैं निश्चिंत होकर अपने घर से निकल पाऊंगी
कब तुम मेरे प्रति अपने दिल में सम्मान जगाओगे
समय कब आएगा जब तुम समझदार हो जाओगे!