अस्तित्व वृद्धाश्रम का
अस्तित्व वृद्धाश्रम का
क्यों अस्तित्व है वृद्धाश्रम का, इस पर विचार करना है,
जिन नैनों ने सपने देखे, आज उनका टूटा सपना है।।
जब श्वास चलती सबसे पहले, माँ का आँचल है मिलता,
पिता के साये में ही तो, बच्चे का बचपन है खिलता।।
जिंदगी के सफर में, वो ही तो हमें चलना सिखाते,
पथ के कांटों को दूर कर, वो साथ हमारा निभाते।।
सर्दी भी होती है जब हमें, माँ ही तो नीर बहाती,
नज़र न लग जाये हमें, काला टीका वो लगाती।।
हमारी ख़ुशियों के ख़ातिर, वो सब अपना गंवाए,
भूल हर अभिलाषा अपनी, बड़ा हमें बनाएं।।
आज इतने निर्मम हुए हम, उस माँ पिता को भूल गए,
कैसे सजाया हमारा जीवन, उस हर पल को भूल गए।।
जिनसे जुड़ी थी जीवन की, कभी हर एक हमारी कड़ी,
वक्त कहाँ है पास अब अपने, उनके लिए दो घड़ी।।
समय और पैसा होगा बर्बाद, कैसे बोझ उठायें,
विचार ऐसे अब मन में, वृद्धाश्रम छोड़ आयें।।
मरे या जियें जो भी करें, बस पीछा हम छुड़ायें,
अब इन बूढ़ों को,अब ओर हम न सह पायें।।
दिल ने जिनके सपने संजोये, आज वही आँसू बहायें,
अपने बच्चों से मिलने के ख़ातिर, आज वही तरस जायें।।
इतना न अपमान करो, बड़े बूढ़ों का मान करो,
जिन्होंने जीवन दिया है तुम को, उनका तुम सम्मान करो।।
कुछ पल के लिए सही, उनके साथ मुस्कुरा के देखो,
बच्चों से प्यारे होते हैं, अपना बनाकर तो देखो।।
नसीबों वाले होते हैं जिनके सिर है, माँ पिता का हाथ,
किस्मत से ही मिलता है, बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद।।
क्यों अस्तित्व है वृद्धाश्रम का, इस पर विचार करना है,
जिन नैनों ने सपने देखे, आज उनका टूटा सपना है।।