पैर
पैर
इनके पैर मत धोओ
बस इन्हें गटर में उतरने से बचा लो
इत्र से महकते कमरे में, गुलाब जल जैसे साफ पानी से,
कांसे की परात में , इनके धुले हुए पैर।
आपने धो दिए।
और कैमरों ने मढ़ दिया इस प्रतीक को।
इनमें से कुछ पैरो को गुमान हुआ की
अब ये भी नए भारत में पैर से पैर मिला कर आगे बढ़ेंगे।
मत करो इन पैरों को बराबर।
बस इन्हें गटर में उतरने से बचा लो।
इन्हें लगा अब कोई इनके पैर पे पैर नहीं रखेगा।
की इनके बाप दादा और उनके बाप दादाओ की
तरह ये केवल पैर ही नही बने रहेंगे।
क्योंकि अब भारत में एक युग पुरुष है जो
भारतीय मानस में इनके पैर से
सिर बनने तक का रास्ता खोलेगा।
आप मत खोलो वो रास्ता।
बस इन्हें गटर में उतरने से बचा लो।
हाँ,आरक्षण समाज का कोढ़ है।
पर ये गंदा काम कोई तो करेगा न
कहाँ है छुआ छूत ,कहाँ है?
अब तो कोई भी कैफे कॉफ़ी डे जा सकता है।
ये लोग खुद ही नीचे बने रहना चाहते है।
जाती व्यवस्था को बदनाम कर दिया है
पैरों की कोई कम अहमियत होती है
पूरे शरीर की जिम्मेदारी उठाता है
अब इन्हें वेद पुराण दे दे बाँचने के लिए ?
प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर।
क्या ये इनके साथ अन्याय न होगा?
साहब न दो इन्हें वेद पुराण
बस इन्हें गटर में उतरने से बचा लो।
गटर और उसमें इन पैरों की ज़िन्दगी।
यानी दुर्गंध, बिजबिजाते कीड़े
ज़हरीली गैसो को समाए,
सुंदर साफ सड़को से ढका हुआ ,
सबके पैरो के नीचे फट पड़ने को
तैयार एक नरक
मल मूत्र से ले के हर वो चीज़ जिसकी ज़रूरत न हो
उसको फेक देने की जगह
जैसे गांव से बाहर इन पैरो की पूरी बस्ती।
इन्हें गांव के अंदर मत लाओ।
बस इन्हें गटर में उतरने से बचा लो।
