प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर। प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर।
वन उपवन में ढूंढकर तुझको, चैन न आवे रात दिन मुझको, वन उपवन में ढूंढकर तुझको, चैन न आवे रात दिन मुझको,