STORYMIRROR

Manmeet Arora

Tragedy

4  

Manmeet Arora

Tragedy

बातें अनकही

बातें अनकही

1 min
273

डर सा लगता हैं जब आहट सी होती है

सहम सी जाती हूँ जब आँख बंद होती है।।


रात के पहर लम्बे से लगते हैं

अँधेरे ओर सनाटे डरावने से लगते हैं।।


किसी के छूने से भी घिन्न सी होती हैं

हर इंसान कि नज़रों से चुभन सी होती है।।


में कहाँ गलत थी ये ख़ुद से ये पूछती हूँ

जब भी लोगों की आँखो से खुद को देखतीं हूँ।।


कहने को लड़के लड़की सब इक बराबर हैं

पर ये अत्याचार से हम ही क्यूँ लाचार हैं।।


ये समाज ओर रिवाज सब इक समान हैं

पर सोच ओर संस्कार से सब बेईमान हैं।।


दोर के साथ थोडा बदल जाओ

ग़लत के लिए आवाज़ उठाओ!

बेंटो के प्रति पक्षपाती ना बन जाओं

बेटी बचाओ ओर बेटी घर लाओ!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy