बातें अनकही
बातें अनकही
डर सा लगता हैं जब आहट सी होती है
सहम सी जाती हूँ जब आँख बंद होती है।।
रात के पहर लम्बे से लगते हैं
अँधेरे ओर सनाटे डरावने से लगते हैं।।
किसी के छूने से भी घिन्न सी होती हैं
हर इंसान कि नज़रों से चुभन सी होती है।।
में कहाँ गलत थी ये ख़ुद से ये पूछती हूँ
जब भी लोगों की आँखो से खुद को देखतीं हूँ।।
कहने को लड़के लड़की सब इक बराबर हैं
पर ये अत्याचार से हम ही क्यूँ लाचार हैं।।
ये समाज ओर रिवाज सब इक समान हैं
पर सोच ओर संस्कार से सब बेईमान हैं।।
दोर के साथ थोडा बदल जाओ
ग़लत के लिए आवाज़ उठाओ!
बेंटो के प्रति पक्षपाती ना बन जाओं
बेटी बचाओ ओर बेटी घर लाओ!!