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AMAN SINHA

Tragedy

3  

AMAN SINHA

Tragedy

अपनी बात

अपनी बात

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अपनी हीं कही बात क्यूँ खुद को क्यूँ पराई सी लगती है 

हर चीज़ जो अच्छी थी कभी क्यूँ अब हरजाई सी लगती है 

अब खुद को कैसे समझाए, इस दिल को कैसे बहलाएं

जो आदत अपनी थी कभी, किसी और की परछाई सी लगती है। 


 बीज़ बोए थे मैंने और कलियाँ नई खिलाई थी 

 आज वो हर कली क्यू मुरझाई सी लगती है 

 खुशियों के बोल से मैंने गीत कई बनाए थे 

 ना जाने क्यूँ सभी विरहा की मारी सी लगती है।


  बड़ी मुश्किल से मैंने सजाया था उस माला को 

  हर एक मोती आज क्यूँ, टूटी, बिखरी, छितराई सी लगती है 

  जब संग थी मेरे वो सौम्य हुआ करती थी 

  ना जाने अब क्यूँ हमेशा घबराई सी दिखती है।


   चुप रहती थी वो जब पेट भरा होता था उसका

   आज ना जाने क्यूँ तिलमिलाई सी लगती है 

   खत्म किया हर वो काम जो मैंने शुरू किया था कभी 

   आज हर चीज़ हाथों से दूर, अधूरी सी लगती है।


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