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Shiv Kumar Gupta

Tragedy

4.5  

Shiv Kumar Gupta

Tragedy

गज़ल

गज़ल

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डर लगता हैं मुझको जमाने से बहुत

अपने ही अपनो को डसे जा रहे हैंं


बेटे दौलत के नशे में चूर हैंं बहुत

एहसान मां बाप के भूले जा रहे हैं


मोबाइल में व्यस्त हैं लोग इतने 

झूले वो सावन के भूले जा रहे हैंं


ओझल हो गई रूह से प्रेम की रीत

जिस्म से इश्क के शिकंजे कसे जा रहे हैंं


पूजे जा रहे हैं पत्थरों को खुदा मानकर

इंसान इंसानों से नफरत किये जा रहे हैं


द्रौपदी की लाज अब बचाए भी कौन

घर घर में अब दुशासन हुए जा रहे हैं

   


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