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Shiv Kumar Gupta

Classics

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Shiv Kumar Gupta

Classics

रावण

रावण

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पिता विश्रवा मेरे मां कैकसी का मैं पुत्र था

तांडव स्तोत्र का रचियता मैं रावण मेरा नाम था


वेद पुराणों का ज्ञाता महादेव का मैं भक्त था

हुंकार से मेरी ब्रह्मांड डोल जाता मैं ही वो रावण था


हां मैने ही सब देवों को बंदी अपना बनाया था

शनि को मैंने ही अपने पैरों के तले दबाया था


शिव चरणों में सिर अर्पित कर दशानन मैं कहलाया था

बहन के लिए नारायण से भीड़ गया मैं ही वो रावण था


था पता मुझे नर रूप में नारायण अयोध्या में आए है

उद्धार करने मेरा परमेश्वर स्वयं पृथ्वी पर आए है


साधु भेष में जाकर सीता को हर के मैं लाया था

दानव रूप में उस देवी को हाथ लगा नही पाया था


रामेश्वर की पूजा करने स्वयं राम ने ही मुझे बुलाया था

हां मैं ही राम को विजयश्री का आशीर्वाद देकर आया था


तंत्र मंत्र वेद पुराणों का मैं ज्ञाता था

काम क्रोध मद मोह अहंकार से मेरा रिश्ता था


हां था मैं दुराचारी पापी और बुराइयों से मेरा नाता था

पर याद रहे राम ने सीता को पाक साफ ही वापस पाया था


राम ने मेरा अंत किया फिर भी तुम पुतला मेरा जलाते हो

क्या तुम अपने अंदर की बुराई का अंत कभी कर पाए हो


कई कुकर्मी घूम रहे पहने नकाब राम का

इज्जत उछाले फिरते है नही सम्मान नारी का


लंका में भयमुक्त सीता थी क्या तुम नारी को भयमुक्त कर पाओगे

सीता सुरक्षित नहीं इस जग में अब राम कहां से लाओगे


मुझ प्रतापी महाज्ञानी रावण का श्री राम ने अंत किया

राम से ही जन्म लेकर राम में ही सांसों का विलीन किया


राम राम कहकर अंत समय में प्राणों का मैने त्याग किया

गुरु बनकर लक्ष्मण को जीवन का अनमोल मैने ज्ञान दिया


रावण को समझना किसी के बस की बात नही

नारायण के आए बिना रावण का कोई अंत नहीं।



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