रामलला
रामलला
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सखी मैं रघुवर के घर हो आई।
सुध बुध खोई मन वहीं छोड़ आई।
रामलला को देख मंत्र मुग्ध सी हो गई।
लल्ला के पायल की खन खन में खो गई।
श्याम सलौने राम कमर में पीताम्बर बाँधे।
पाँवों में पैजनियां पहने धनुष धरे काँधे।
गुर मुर गुर मुर प्रभु दौड़ लगावे।
अवधेश प्रभु को पकड़ कहाँ पावे।
शशि की आभा भी फीकी पड़ जाती।
कोटि कलाएं काम की न्योछावर जाती।
कमल नयन हरि नील वर्ण मधु तोतरि वाणी।
ऐसे मनमोहक दृश्य देख बलिहारी हर प्राणी।
बार बार हठ कर रहे चंद्र खिलौना पाऊँ।
बाल लीला देख देख मैं उनके गुण गाऊँ।
सखी मैं रघुवर के घर हो आई।
सुध बुध खोई मन वहीं छोड़ आई।
