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Shiv Kumar Gupta

Abstract

4.5  

Shiv Kumar Gupta

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काश मेरी भी एक बहन होती

काश मेरी भी एक बहन होती

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काश मेरी भी एक बहन होती

हर सुख दुख में साथ हमेशा मेरे होती


मैं खूब लड़ता झगड़ता मारता उसको

शिकायत कर मां से डांट खिलवाती वो मुझको


इधर उधर आता जाता परेशान उसको करता रहता

मोटी–मोटी कहकर हर वक्त उसको मैं चिढ़ाता रहता


गुस्सा करने पर मुझसे वो रूठ जाती

मैं चॉकलेट खिलाता उसे और वो मान जाती


मेरी हर चीज पर जबरदस्ती अपना हक वो जमाती

जब भी गुस्सा होता उससे प्यार से मुझे वो मनाती 


जन्मदिन पर अच्छा सा तोहफा उसको मैं देता

राखी बंधवाकर रक्षा का वचन उसको मैं देता


उसके होने से घर हरा भरा सावन जैसा होता

उसकी प्यारी मुस्कान से खुशनुमा हर सवेरा होता


ए खुदा एक बहन मुझे भी दे देता

लाड़ से रखता हर मुसीबत में साथ उसका देता


खुदा की ना जाने ये कैसी खुदाई है

बहन बिन सूनी पड़ी भाई की कलाई है।


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