फौजी की अभिलाषा
फौजी की अभिलाषा
फ़ख्र है खुद पर जो वतन के लिए जान लुटाई,
वतन वालों अलविदा...... अब लेते हैं विदाई।
वीरों की संतान हैं हम, हमें मौत डरा न पाए,
रंज तो इस बात का के छद्म युद्ध में जान गवाँई।
होते दो-दो हाथ अरि से तो मरने का मजा आ जाता,
शहादत की चाहत हर फौजी के दिल में ले अंगड़ाई।
तिरंगे में लिपट शान से जब पहुँचेंगे घर गाँव व में,
हजारों आँखों की नमी कहेगी ड्यूटी शिद्दत से निभाई।
यही प्रार्थना है उस प्रभु से रेखा सुन ले अर्ज हमारी,
इसी भारत भूमि पे फिर लें जन्म जहाँ शहादत पाई।