STORYMIRROR

Rekha Rana

Others

3  

Rekha Rana

Others

बचपन और पचपन

बचपन और पचपन

1 min
520

मार्गदर्शन करूँ जीवन पथ का,

आज तेरे बचपन का,

कल संभालना मुझे मान - सम्मान से,

जब मैं होऊँगा पचपन का।


ये जीवन का चक्र

सदियों से चल रहा है,

इसान बदले, बदली पीढियां,

हाँ रिश्ता वही पल रहा है।


मेरे पिता ने राह मुझे दिखाई,

आज मुझ पर ये जिम्मेदारी आई है,

कल मेरी जगह पर तू होगा,

बाप - बेटे की ईश्वर ने नियति बनाई है।


बचपन - पचपन एक से होते,

पर हम अक्सर बचपन के पीछे भागे,

भूल जाते हैं के हम से ही जुड़े हैं,

पचपन के भी धागे।


जवानी किसी की मीत नहीं,

प्रमाणित करने के लिए

दरकार न किसी सबूत की,

कल पिता की थी, आज तेरी है,

कल होगी तेरे पूत की।


इसलिए जैसा बर्ताव चाहता है तू,

आज के इस बचपन से,

आज वैसा ही व्यवहार करना होगा,

तुझको अपने पचपन से।


अपने बुजुर्गों को कर उपेक्षित,

अपने भविष्य को कैसे ,

खुशहाल समझ सकता है,

याद रखना ओ मन बावरे

के पेड़ पर बबूल के,

आम कभी नहीं लगता है।


Rate this content
Log in