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Rekha Rana

Drama

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Rekha Rana

Drama

माया महाठगनी

माया महाठगनी

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माया एक भुलावा है ये सारी दुनिया जाने है,

पर फिर भी यहाँ हर दिल पैसे को सर्वस्व माने है।

मृग मरीचिका सी ललचाये हमें, अंधाधुंध दौड़े जा रहे,

प्रेम, प्यार, संस्कार सब पीछे छोड़े जा रहे।


माया महाठगनी है पर हर कोई है इसका अभिलाषी,

इसके पीछे भाग रहा सब क्या साधू-क्या सन्यासी।

पीछे दौड़ा - दौड़ा के बंदे को तन्हाई के कुएं में धकेले,

उसी कुएं में इसाँ फिर ताउम्र इसके आगे पीछे खेले।


न सुकून न चैन की साँस बस भागा दौड़ी कर्ता,

आभासी खुशियों के लिए भाग-भाग कर थकता।

माया को पा लेने पर भी बंदा खुश नहीं रह पाता,

जीवन के अंतिम पड़ाव पर आकर ये समझ आता है।


बैठ सुकून से दो पल के लिए जरा कुदरत के पास,

सच्ची खुशी मन में छुपी है ये हो जायेगा अहसास।


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