छिपे जज़्बात
छिपे जज़्बात


हो जायें बेपर्दा
खुद से कभी तो,
बनावटी वजूद से
निजात पायें कभी तो,
कितनी ही बातें
छिपाई थी खुद से ही,
कितने ही झूठ बोले थे
खुद से ही,
वो रूठी सखी से
गले मिलने की चाहत,
झूठे अहं की सलीब
पे बलि दोस्ती की,
मुहब्बत की चिंगारी का
बेदर्दी से दमन,
छोटी - छोटी ख़ुशियों को
दरकिनार करना,
झूठी अकड़ ने
कितने अरमाँ हैं मारे।
जज़्बात की स्याही से
मन के कागज़ पर,
लिख दे सभी अरमाँ
जो दिल में छिपे हैं।
वो सभी चाहतें जो
आत्मा की गहराई में
दबी है,पर अवचेतन
मन में अक्सर
झिंझोंड़ती हैं मुझको।