" अब भी'" स्मृतियों की सैर
" अब भी'" स्मृतियों की सैर
अपने ह्रदय में तुम्हें सम्भाले
हर उतार चढ़ाव में
मैं बैठी हूँ, आज भी उसी दरीचे में
जीवन के उसी ,
सुरम्य, आनंदित गीत को गुनगुनाते
कहीं सुदूर, शांत, स्थिर
रात के स्याह आसमान पर
अपनी नज़रें टिकाए
मैं देख सकती हूँ
कहीं बहुत दूर से उदित होते
उस अर्ध नवचंद्र को,
धीमे से सरकते रुई के फ़ाहे से बादलों के बीच
ढूँढ सकती हूँ मैं अपने प्रिय मनभावन सितारे को।।
यही तो इस अद्भुत पल की विशेषता है
कि हर सितारा आतुर है उसकी सराहना करने को
हवा का हर झोंका मानो
मेरी निर्जन आत्मा को सुरों से भिगो रहा है
गलियारों में पत्तियों की सरसराहट
ऐसे सुनायी पड़ रही है
मानो ह्रदय की विचलित तानों पर
शिराओं में अनगिनत अभिलाषाएँ
बह रही हों
ह्रदय फिर उन्ही निषिद्ध
स्मृतियों की सैर पर निकल चला
स्मृतियाँ जो कभी धुँधलाती नहीं
बस सदा के लिए ठहरी रहती हैं
और समय की लहरों पर सवार
हर पल, बार बार
मैं तुम्हें अपने ही भीतर,
अपने अंतस में पाती हूँ।।
अब भी।।।