अपेक्षा एक मात्र दुखमूल
अपेक्षा एक मात्र दुखमूल
जिसको जब जो देना चाहो
दे दो
जिसके हित जो करना चाहो
कर दो।
न करना चाहो
मत करो
न देना चाहो
मत दो किन्तु वृथा मत
आशा बांधो।
बदले की मत सोचो
विशेषकर शुभ
भला करो तब
बदले की मत सोचो।
चाहे अपना हो
चाहे पराया हो
मत सोचो
वह ऋणी रहेगा
तुम्हें तुम्हारा किया
कृतज्ञ हो लौटाएगा।
आशा बस दुःख देगी
अपेक्षा मन भारी कर देगी
करो और भूलो
अपना हित खुद रखो सुरक्षित
अपने नीचे अपनी जमीन
बनाये रखो।
अपने सिर अपना नील वितान
तना रहे आख़िरी साँस तक
क्यूंकि अपेक्षा
एक मात्र दुखमूल।