अजरामर आत्मा
अजरामर आत्मा
प्रति प्राणी का शरीर है नश्वर,
प्रति जीव को जीवात्मा जीवनदान दिए है परमेश्वर।
भग्वद्गीता द्वारा जगद्गुरु श्रीकृष्ण प्रदान किए है आत्मज्ञान,
आत्मसिद्धि आत्मोपलब्धि ज्ञानयोग कर्मयोग का सन्मार्ग दर्शाए यह ब्रह्मज्ञान।
पुरुषोत्तम श्रीक्षेत्र के श्रीजगन्नाथ हैं उत्कलीयों के जीवंत ठाकुर,
जीर्णवेर परित्याग जीर्णोद्धार का आभास कराए पतितपावन का नव कलेवर।
अजर आत्मा का शरीर में हैं एक निर्धारित अवधि,
समयसीमा उपरांत वियोग करना होगा प्राणशक्ति स्थित कलेवर का परिधि।
प्रतिदिन मनुष्य व्यवहार करे पृथक परिधान,
अनन्तरूपी आत्मा अविराम अन्वेषण करे नूतन शरीर का अनुसन्धान।
आत्मा हैं चिरंजीव चिरंतन चिरकुमार चिरहरित,
यही सूक्ष्म आध्यात्मिक अशरीरी अंश है परम पुनीत पवित्रीकृत।
कभी न रखें ऐहिक शरीर के प्रति विमोह,
अजरामर अरमा का किसी के प्रति नहीं हैं स्नेह व्यामोह।