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Vinod Kumar Mishra

Classics

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Vinod Kumar Mishra

Classics

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

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गरिमामय संस्कृति अपनी थी

जाने किसकी नजर लग गई

अपनेपन का भाव खो गया

मानवता भी शून्य हो गई।


कर्तव्य बोध की परिभाषा

अब तो मानो क्षणिक बन गई

बचपन को शाला पहुंचाता

वृद्धाश्रम कलई खोल गई।


गौर करें अब दुनियां वाले

नेह भावना कहाँ खो गई

माना शिक्षा बहुत जरूरी

पर, वृद्धाश्रम क्यों खोल गई।


वह समाज तो बेहतर था

जब वृद्धावस्था शान बन गई

नये दौर की परिभाषा लिख

'वीनू' यह कलम लजाय गई।


नहीं स्वार्थ, अपनत्व भरा था

संस्कृति ऐसी लुप्त हो गई

जाने मस्त कहाँ व्यस्त हो गया

जो मानवता अब रुग्ण हो गई।


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