STORYMIRROR

Vinod Kumar Mishra

Classics

3  

Vinod Kumar Mishra

Classics

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

1 min
309

गरिमामय संस्कृति अपनी थी

जाने किसकी नजर लग गई

अपनेपन का भाव खो गया

मानवता भी शून्य हो गई।


कर्तव्य बोध की परिभाषा

अब तो मानो क्षणिक बन गई

बचपन को शाला पहुंचाता

वृद्धाश्रम कलई खोल गई।


गौर करें अब दुनियां वाले

नेह भावना कहाँ खो गई

माना शिक्षा बहुत जरूरी

पर, वृद्धाश्रम क्यों खोल गई।


वह समाज तो बेहतर था

जब वृद्धावस्था शान बन गई

नये दौर की परिभाषा लिख

'वीनू' यह कलम लजाय गई।


नहीं स्वार्थ, अपनत्व भरा था

संस्कृति ऐसी लुप्त हो गई

जाने मस्त कहाँ व्यस्त हो गया

जो मानवता अब रुग्ण हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics