वक़्त कब ठहरा किसी का-
वक़्त कब ठहरा किसी का-
माँग कर सम्मान पाना ये हमें भाता नहीं।
बेवजह रिश्ते निभाना ये हमें भाता नहीं।
बाँट देती हूँ खुशी ग़म को छिपा मैनें रखा
गैर को किस्सा सुनाना ये हमें भाता नहीं।
है कई मजबूरियां हँस कर करूँ मैं सामना
अश्क आँखों से बहाना ये हमें भाता नहीं।
वक़्त कब ठहरा किसी का ये हमें मालूम है
बेबसी सबको दिखाना ये हमें भाता नहीं।
हाथ की अपनी लकीरें जो लिखीं किस्मत वही
फालतू की सोच लाना ये हमें भाता नहीं।
मैं 'सजल' विश्वास करती ईश कर्मो- धर्म पे
रह मगर इंसा बनाना ये हमें भाता नहीं।
