STORYMIRROR

Sarita Tripathi

Classics

3  

Sarita Tripathi

Classics

नववर्ष

नववर्ष

1 min
158

दिन कुछ ही बचे हैं साल के गुजरने में

एक साल नया और जुड़ जायेगा जीने में

कुछ मिले नये लोग कुछ अपने बिछड़े थे

शुरुआत दर्द दहशत आज फिर वही सीने में


ज़िंदगी सिमटती चली जा रही है

वास्तविकता से कटी जा रही है

अपना लिया था मैंने उसको भी प्यार से

रूप बदल बदल वही वार कर रहा है


सोचती हूँ आने वाला साल ऐसा हो

परजीवी को घटाये कोई भाल ऐसा हो

सोच सोच कर यही जी रही हूँ मैं

क्या पता बाइस में न काल ऐसा हो


दोस्त भी कई मिले कई दुश्मन बने

याद हैं हमें सभी राह जो भी मिले

ज़िंदगी कटी पतंग सी लटक गयी

आस्तीन के नाग जब पग पग मिले


बोल मीठे बोल यहाँ बोलता है वही

काम जब तलक उसके आती रही

तालियाँ महफ़िल की होती गुलाम है

तन्हाइयों से मिलने कोई आता नहीं


न समझ क्या पता गुजरे साल थे रहे

समझ अब सच्चाईयाँ आ रही हैं उसे

देखने में लगती अगर चेहरे से मासूम वो

ये आपकी है बेवक़ूफ़ी आपने समझा उसे


बदल रही दुनिया कि बदल रहे लोग हैं 

आज जो thaur है कल कहीं और है 

सीढियां चढ़नी यहाँ सबको ही है मगर 

पहुँच रहा शीर्ष वही जिसके पैर और हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics