दोहा
दोहा
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मानव इस संसार में, बड़ी बड़ी है बोल।
झूठ सभी का सार है, वचन कहे अनमोल।।
देखी देखा दौड़ के, जा पहुँचे उस छोर।
आप मलत अब हाथ है, धारा नयनन कोर।।
रोक सका न कोई है, जिसके मन में चोर।
ऊपर से दिखते सहज, मन बैठे विष घोर।।
दिन बीते औ माह भी, बीत चले अब साल।
पलट नहीं अब भान है, पूछे किसका हाल।।
आज नहीं अब राज है, दिखता है चहु ओर।
पर्दा हमने डाल दिया, आ नहि पाये शोर।।
