यादें
यादें
1 min
213
ताज को देख रही माता
औ लाल को ताज देखाय रही है
निज बालक खुशियां खातिर
वह धूप मा देह तपाय रही है
चाँद चांदनी ताज दिखय तो
मात सौंदर्य बतलाय रही है
औ जेठ दुपहरी पाँव जरय जो
दुःख आपुन देखव छुपाय रही है
कष्ट मिलय तो कैसय मिलय
खुशियां सब पर बरसाय रही है
एकहि ताज औ सात अजूबा
देखि देखि मन हरसाय रही है
चाँद सदैव भावय मन को
भानोदय तन दुखाय रही है
आँखिन नूर बढ़ावय खातिर
वह सूरज नयन मिलाय रही हैं
बीतल बचपन घटना आजु
देखव सबसे बतलाय रही है
पढ़ि पढि मन आनंदित होइगै
अब सरिता पंक्ति बनाय रही है।
