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जितेन्द्र सिंह जीत

Abstract Classics

4.0  

जितेन्द्र सिंह जीत

Abstract Classics

नमन

नमन

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67


है नमन वीर तुमको वतन का

इस वतन की बहारें हैं तुमसे

है हिमालय से ऊंचा तेरा कद

तेरे दम से महकती फिजाएं

है नमन वीर .....


आसमां में जो उड़ते परिंदे

अब नज़र आ रहे हैं हज़ारों

लाखों बलिदानों ने है बनाई

उड़ने की राह -ए-आज़ादी 

उन सांसों की खुश्बू हवा में

हर कली को जिगर दे रही है

है नमन वो वीरांगना की बिंदिया

गाज़ बनके गिरी दुश्मनों पे

है नमन वीर....


बालपन में हीं पनपी जवानी

रंग गए तू बसंती चोला

सिर्फ़ मौजूदगी की धमक से

थम गई सारे गोरों की सांसे

चूमकर पहने फांसी के फंदे

आहुति प्राणों की हंसते-हंसते

है नमन तेरी मां के आंचल को

तेरा आंगन जहां तेरी यादें

है नमन वीर ....


याद है वो अनूठी कहानी 

रक्त से लिखी जयहिन्द निशानी 

हिंद की फ़ौज का कारवां अब

है वतन की सीमाओं के रक्षक

मोक्ष के बदले ओढ़ा तिरंगा

तन समर्पित बहार-ए-वतन को

शौर्य साहस समर्पण के मानक

मुल्क अभिभूत करता नमन है


सत उपवास और सादगी से

जीत लिखे अनेकों अहिंसा

वो सत्याग्रह के सलीके

कारगर आज भी हैं उतने

तेरा जीवन निर्मल दर्पण

दिखता हर तरफ़ एक सा है

हे वतन पे शहीदों नमन है

अमर है गुलिस्तां तुम्हारा....! 


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