हिंदी, मेरी बोली
हिंदी, मेरी बोली
जो ज्ञान की भाषा है,विज्ञान की भाषा है
वो हिंदी मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है ।
अंबर से आ नीचे, पर्वत को सहलाये
झम झम गिरता झरना, कल कल बहती जाये
जो बसंती बयारों में,पावस की फुहारों में 2
कानन हो आनंदित,श्रृंगार की भाषा है
जो ज्ञान की भाषा है,विज्ञान की भाषा है
वो हिंदी मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है ।
फिर प्रणय मिलन बेला, में महकी बहारें हैं
मदमस्त परागों से ,नवगीत रचे भंवरे
झुरमुट के झोखे से , झांके चुपके चुपके 2
उपवन की कोयलिया, के गान की भाषा है
सम्मान की भाषा है,अभिमान की भाषा है
वो हिंदी मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है ।
गाये अल्हड़ फकीरा, कोई अविरल संतवाणी
गुमनाम सितारों की, है कलम ए शहनाई
है भोर की कुछ शबनम,रणभेदी की गुंजन 2
जयहिंद के नारों में, बलिदान की भाषा है
रग रग में जोश भरे, वो शान की भाषा है
वो हिंदी मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है l
हर शब्द के भाव अलग, हर भाव के शब्द नए
जो रस हैं जीवन के, सब रस हैं हिंदी में
है कोई नहीं दूजा,जो अपनी हिंदी में
अब मान रही दुनिया, संसार की भाषा है
जो ज्ञान की भाषा है,विज्ञान की भाषा है
वो हिंदी मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है ।