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Dr.Shilpi Srivastava

Classics

3  

Dr.Shilpi Srivastava

Classics

कन्हैया

कन्हैया

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बाँस की थी बाँसुरी,

तूने छुआ 'मुरली' बनी, 

गाँव की ग्वालिन थीं सब,


तुझमें मगन 'गोपी' बनीं,

तुमने उद्धव को 'भ्रमर' के 

रूप से शोभित किया,

तुमने ही अर्जुन को

 

गीता ज्ञान से पूरित किया,

हे कन्हैया! मेरी भी अब

शांत कर दो यह 'अगन',


मुझको भी अपनी 'शरण' दो,

मुझको दो अपनी 'लगन।


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