प्रश्न
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है प्रश्न मन में कौंधता उत्तर नहीं है सूझता,
क्या कोई रस्ता नहीं है अमन-शान्ति-चैन का?
क्या करें ऐसा कि माँ का लाल यूँ बिछड़े नहीं,
लाडले,उस दिल टुकड़े के लिए तड़पे नहीं,
क्या कोई उम्मीद है कि ना हो रक्तिम यह धरा?
हों सभी सुख चैन से,इन रंजिशों में क्या धरा?
एक तरफ 'है विश्व बन्धु' यह सभी कहते रहे,
पर ज़रा सी भूमि ख़ातिर क्यों सदा लड़ते रहे?
हर समस्या का सदा होता है कोई रास्ता,
क्यों नहीं उत्तर हमें इस प्रश्न का है सूझता?