सुविचार
सुविचार


भावों की गुम्फित माला बन,
मन में यूं आते रहना,
चलित,दिग्भ्रमित,चंचल उर को,
नई राह दिखलाते रहना;
जब अनुकूल विचारों से नित,
रहता है भरपूर हृदय,
तब मानव ना विचलित होता,
ना ही होता है संशय;
किंतु कभी यदि कुत्सित बन कर,
तुम मन को हरने लगते,
तब विवेक भी साथ ना देता,
लगते छींटे अपयश के;
सदा सुमंगल 'सुविचार' बन,
धारा नवीन बहाते रहना,
चलित,दिग्भ्रमित,चंचल उर को,
नई राह दिखलाते रहना।