मां ही प्रथम
मां ही प्रथम
जीवन की प्रथम गुरु,
मां ही तो होती है,
भूली भटियारिणी से,
हम भूल बैठे हैं,
मां तो जन्म से पहले ही,
गर्भ में शिक्षित करती रहती,
संसार का ज्ञान दे देती,
अपने-दूजों का भेद बता,
व्यवहार का ज्ञान भर देती,
जन्म देती जब वह,
ममता की छाया में रखती,
अंगुली पकड़ चलाती वह,
पहला शब्द सिखाती वह,
पहला अक्षर लिखवाती वह,
तूफानों से लड़ना सिखाती वह,
हर बांधा को आधा बतलाती वह,
जीवन साधना सिखलाती वह,
उसकी वाणी ईश्वर वाणी,
उसकी शिक्षा दीक्षा होती,
उसका ना कोई सानी है,
अपनी निर्मलता के पानी से,
वह सबको पवित्र कर देती है,
इस धरा की श्रेष्ठ शिक्षक,
मेरी दृष्टि में मुझे केवल मेरी मां लगती।