।। अलंकार ।।
।। अलंकार ।।
आज बादल ने आँचल, फिर अपना लाल भिगोया है,
लगता है माँ ने सरहद पे ,लाल अपना फिर खोया है।।
जी दुखी व्याकुल सा मन है,सोच कर उस माँ का हाल,
जो जी रही इस आस में, घर आएगा बेटा अबके साल।।
जाती घटा और बारिश की बूंदें, कुछ साथ ऐसे दे गयीं।
दीं घटा कुछ मायूसियां अब ,पर आंखों में आंसू दे गयीं।।
बुझता दिया भी कह गया , कुछ हर्फ़ उस की शान में,
देखो दीवाना चल दिया , है देश गर्व और अभिमान में।।
ऐसी विदाई कि रो पड़े तब ,आकाश के सब चांद तारे,
प्रभु तारे ऐसे जीवन को, दे वैकुण्ठ के पद नाम सारे ।।
हैं धरा को नाज़ उनपर, जो अपना शीश अर्पण कर गए,
धरा रह गया अरि का ओछापन,वो नाम अपना कर गए।।