"कलम के साथी"
"कलम के साथी"
जब से कलम का हाथ थामा है,
तब से कुछ अलग जाना ज़माना है।
पहले तो हम डर-डरकर जीते थे,
अब तो हम पहले से निडर जीते हैं।
देख कलम की बेख़ौफ़ ताकत को,
अब इसको हम पहली सत में रखते हैं।
ज़माना हमें अब साहित्य से जुड़ा मानता है,
पहले से ज़्यादा दूर से ही पहचानता है।
हर कलमकार को नमन है मेरा,
उनमें कभी नहीं होता मेरा-तेरा।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बहुत आसान कर देते,
अपनी सारी कमाई को सब को बांटते रहते।
जब से कलम का हाथ थामा है,
तब से कुछ अलग जाना ज़माना है।
