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अनूप बसर

Abstract

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अनूप बसर

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अद्भुत प्रकृति प्रेम

अद्भुत प्रकृति प्रेम

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उनको इतना पुकारा 

पहले गला बैठा

फिर आहिस्ता-आहिस्ता वहीं

हम बैठ गए

दिल की धड़कनें तेज़ हुईं

और तेज हुईं...

फिर हम वहीं बेहोश हो गए

गिर पड़े, गिरे पड़े रहे घण्टों 

उसी जगह

जहाँ से उनको पुकार रहे थे..

सबसे पहले ख़बर उनको हुई

जिनको हम पानी दिया करते थे

जिनसे एकांत में मिला करते थे

जिनसे अपनी सारी बातों को 

साझा करते थे...


वो ही सारी बगिया के फूल 

परेशान होने लगे

मानों जैसे उनका साथी ही बेहोश हुआ हो

उनपर जो तितलियां बैठतीं थीं 

फूलों ने उनसे कहा जाओ देखकर आओ

हमारे मालिक हमारे प्यारे साथी

को कुछ हुआ है?

हमारा मन परेशान सा हो रहा है

बगिया की सारी तितलियां,

सारे भौंरे, सारी मधुमक्खियां

सब हमारा हाल जाने के लिए 

दौड़े चले आए

हमको बेहोश देख

सब फूलों ने अपनी खुशबू

हमारे पूरे जिस्म में भर दी...


सारी तितलियां रोने लगीं

सारी मधुमक्खियां मायूस हो गईं

और भौंरे भी खुद रोने लगे

मानो सब कह रहे हों 

अरे उठ जाओ

तुम्हारे बिना हमारा कोई नहीं है

तुम चले गए तो हमारा ध्यान कौन रखेगा

हमसे इतना प्यार कौन करेगा

कुछ देर बाद हमको होश आना शुरू हुआ

बगिया में सभी को खबर हो गयी

सब बहुत खुश होने लगे...


और जो सब मिलने आये हमसे

हमको अपने साथ बगिया में ले गए

फिर सारी बगिया बसंत ऋतु की तरह

खुश होने लगी और हमसे एक साथ 

गले लगने लगी...

इस तरह हम बगिया के हो गए

और बगिया के सारे फूल,

पेड़, तितलियां, मधुमक्खियां और भौंरे 

सब हमारे और भी प्यारे हो गए।

अब जिसके लिए बेहोश हुए थे

वो खुद अब मिलने के लिए

बगिया में जो फूल पहरा दे रहे

उनसे, हमसे मिलने के लिए

वक्त मांग रहे हैं....।


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