"उमंग"
"उमंग"
जब गया पहली दफ़ा
पहाड़ों पर घूमने
हर पल उमंग से भरता गया
हल पल उमंग में बहता गया
हर तरफ एकांत,
मानों ध्यान के लिए
पवित्र जगह ये ही है,
कहीं मंदिरों की रौनक
मानो मन की शांति यहीं है
रास्तों पर पैदल चलते हुए भी
जिधर देखो उधर
कभी कुदरत हाथ मिलाती
कभी कुदरत गले लगाती
प्रतीत हो रही,
झरने, पहाड़, कहीं बर्फ जमीं
कहीं चीड़ के पेड़
जैसे मुझको ही सब अपने पास
बुला रहे हों,
और बहता शीतल जल
सब कुछ देख मन हो रहा निर्मल
मैं एक-एक दृश्य को देर-देर तक देखता
अपनी कलम से डायरी में उतार लेता
मुझको तो बस ये ही लगता
कि अनूप यहीं पर रह
यहीं पर रह...।