ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
रूठकर करोगे क्या अपनी ज़िंदगी से,
सदा मुस्कुराते रहो अपनी ज़िंदगी से।
कैफियत खुद की बेहाल मत करो,
दूर रह सको तो दूर रहो रिंदगी से।
रिंदगी- पाप
खुले फलक में बेख़ौफ रहो परिंदों की तरह,
लोग खुद-ब-खुद जुड़ जाएंगे आपकी बंदगी से।
इल्तिजा ना करो जहां में हर किसी से,
वरना लोग गुलाम बना लेंगे इसी मौजूदगी से।
इल्तिजा - निवेदन, प्रार्थना, मन्नत..
खाक में मिलना है तुम्हें भी हमें भी,
फिर क्यों नहीं जीते हो आज़ादगी से।
इक दिन रुख़सत होना है इस जहां से,
जीते जी पाकीज़ा बने रहो अपनी सादगी से।
खुद में इल्म को मक़ाम दो हर जगह,
हमेशा दूर रहोगे बेवजह की रंजीदगी से।
रंजीदगी- अनबन,रंजिश...।
जहां में पाक-साफ इंसां कम हैं,
खुद को ही अपना बना लो संजीदगी से।
रूठकर करोगे क्या अपनी ज़िंदगी से,
सदा मुस्कुराते रहो अपनी ज़िंदगी से।