कण-कण में हैं गुरु
कण-कण में हैं गुरु
कण-कण में गुरु हैं बसते
कण-कण ज्ञान का है भण्डार,
सीखने की चाह जो रक्खे
व्यक्तित्व में उसके आता निखार,
संपूर्ण नहीं कोई जगत में ज्ञानी
है ज्ञान का सागर अनंत अपार,
जितना चाहे कर लो अर्जित
न उम्र का इसमें कोई आधार,
अच्छे-बुरे का भेद सिखाए
दिखाए प्रकाश मिटा अन्धकार,
गुरु से बड़ा न जग में कोई
बिन गुरु न हो सके बेड़ा पार,
होते नहीं गुरु जो जग में तो
होते कैसे फिर शुद्ध विचार?
बिना गुरु के नहीं थे सम्भव
दुनिया में कोई संस्कार,
दुनिया में कुछ भी निरर्थक
रचता नहीं यहाँ करतार,
करता रहे ज्ञान जो अर्जित, वही
सच्चे शिष्य का पाता अधिकार।
