बात और होती
बात और होती
इस कदर लौट आओगे सफर से
कभी सोचा ना था
बमुश्किल सजाया था सपना
इस कदर टूट जाओगे कभी
कभी सोचा ना था
माना चलना आसान नहीं था
इस सफर में
पर कुछ दूर और गये होते तो
बात और होती
माना बहुत से काँटे बिछे थे
राहों में
पर कुछ काँटे ही बीन आते तो
बात और होती
अरे सारे बिखर ही जाते हैं
मुश्किल राहों में
थोड़ी और निखर गये होते तो
बात और होती
अरे तुझे भी कुछ ना कुछ मिल ही जाता
सफ़र से
कुछ दिन और सबर किये होते तो
बात और होती
अरे डरकर भागने वाले भागकर जाओगे कहाँ
है कौन सा सफ़र ऐसा ना दर्द मिलेगी जहाँ
कुछ घुँट दर्द के विष का और पीये होते तो
बात और होती
कुछ दिन सफ़र को और दिये होते तो
बात और होती।
