नादान दिल
नादान दिल
नादान दिल बगावत कर ही जाता है
लाख इनायत करके भी
एक बार सम्भल ना पाता है
बस अपनी करने के ख़ातिर
हर बार बगावत कर जाता है
पता नहीं क्या चाहत है उसकी
एक बार समझ ना पाता हूँ
जिसको पाने के ख़ातिर
हर बार रूठ मचल ही जाता है
बेचैनी का आलम ना पूछो
रोम रोम तक सिहरन हो जाता है
भीतर ही बैठकर वो जब
अपनी जोर लगाता है
मन को भी खिंचकर वो
वहीं पटक जाता है
जहाँ उसकी नादानी का
हद जवाँ हो जाता है
पता उसको भी है कि
उसकी चाहत मुश्किल है
पर नादानी की चादर ओढ़कर
हर बार बगावत कर जाता है
नादान दिल हर बार नादानी कर ही जाता है ।।