गुरु नाविक का ज्ञान
गुरु नाविक का ज्ञान
श्रद्धा का है आवरण, अंदर झूठी शान ।
शिष्य दान सा दे रहे, गुरुओं को सम्मान ।।
गुरु शिल्पी की भाँति ही, देता शिशु को रूप ;
माटी के तन में मिला, संस्कारों की जान ।
जिसको सच्चा गुरु मिले, समझे वह सौभाग्य ।
होती सबके भाग्य में, कब हीरे की खान ।।
खुद जलता है उम्र भर, देता मगर प्रकाश ।
उसी दीप की भाँति तुम, और तुम्हारा ज्ञान ।।
टूटी जीवन नाँव पर, बैठा जीव अबोध ।
पार हुआ भव जब मिला, गुरु नाविक का ज्ञान ।
