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Dr.Shilpi Srivastava

Tragedy

4  

Dr.Shilpi Srivastava

Tragedy

स्वार्थ का आवरण

स्वार्थ का आवरण

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 आज कहना चाहती हूं,

 बात कुछ अपनी जुबाँ से,

 अपनी धुन में झूमते हैं,

 किसको है मतलब जहां से;


           है सभी खोए हुए,

          महलों में अपने है दफन,

          ऐसा लगता है कि जैसे,

          ओढ़ बैठे है कफ़न;


हो रहा हो कुछ कहीं भी,

इस बात से हिलते नहीं,

अपने मतलब के अलावा,

अन्य से मिलते नहीं;


          जब तलक यूँ निज अहम् का,

          आवरण टकराएगा,

          स्वार्थ में डूबे रहेंगे,

          सुख न कोई पाएगा।


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