स्वार्थ का आवरण
स्वार्थ का आवरण
आज कहना चाहती हूं,
बात कुछ अपनी जुबाँ से,
अपनी धुन में झूमते हैं,
किसको है मतलब जहां से;
है सभी खोए हुए,
महलों में अपने है दफन,
ऐसा लगता है कि जैसे,
 
; ओढ़ बैठे है कफ़न;
हो रहा हो कुछ कहीं भी,
इस बात से हिलते नहीं,
अपने मतलब के अलावा,
अन्य से मिलते नहीं;
जब तलक यूँ निज अहम् का,
आवरण टकराएगा,
स्वार्थ में डूबे रहेंगे,
सुख न कोई पाएगा।