अंधेरी रातों से अपनी रौशनी पाई
अंधेरी रातों से अपनी रौशनी पाई
उन परिंदों की उड़ान पर कब तक पहरे लगा पाएगा कोई,
जिन्होंने उड़ना भी पंख गंवाने के बाद हीं सीखा है।
अंधेरी रातों से अपनी रौशनी पाई है,
और खुद के हाथों में नई लकीरों को खींचा है।
जलती चिता पे अपने जीवन को पुनः पाया है,
और मृत नसों को उम्मीदों के लहू से सींचा है।
बारिश की बूंदों में आंसूओं को गवायाँ है,
और कड़ी धूप में आंखों को कई बार मींचा है।
संघर्षों में उन दर्दों को छिपाया है,
और स्वाभिमान ने इस नई तस्वीर को खींचा है।
पथरीले रास्तों से मंजिल को चुराया है,
और जख्मी पैरों से इरादों को क्या खूब सींचा है।
ठंडी राख में अपने अस्तित्व को खोया है,
और उसी राख में अंगार बनना भी सीखा है।
छुटते किनारों ने अपनी लहरों से मिलाया है,
और सागर की गहराई में बवंडरों को लिखा है।
इस बदलते मौसम से डर रहे हो क्यों ?
अभी तो बस मेरी ख़ामोशियों ने हीं चीखा है।