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Manisha Manjari

Tragedy

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Manisha Manjari

Tragedy

क्रोध से हार

क्रोध से हार

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क्रोध से हार, आज मौन को तोड़ गयी वो,

शब्दों में स्वयं के, अथाह विष को घोल गयी वो। 

आज फिर दर्द का, ऐसा बवंडर सा उठा,

की अपने हीं अक्स को, अंधेरों में छोड़ गयी वो। 

अरसों से सहेजे थे, जिन रिश्तों को आँखों में,

उनके घातों को न्याय-तराजू, में तोल गयी वो।

मर्म हृदय की संवेदनाओं पर, आघात वो हुआ,

संयम की धाराओं का रुख़, तूफां की दिशा में मोड़ गयी वो। 

ख़ंजर अपनों के हीं, इतने धँसे थे अस्तित्व पर,

की होली रंगों से नहीं, लहू की धाराओं से खेल गयी वो।

आँखों में अश्रु की जगह दंश, भरा गया था, यूँ ,

की अपनी हीं रूह को, ज्वलंत अंगारों पर चलता छोड़ गयी वो।

सवालों से भेदा था, श्रद्धा को उसके ऐसे,

की आस्था के दीपों को, अपने हीं मुँह से फूँक गयी वो।

अपने सपनों की अर्थी को, कंधा लगाया था यूँ,

की हाथों को मंदिर में नहीं, मरघट में जोड़ गयी वो।


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