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Manju Saini

Tragedy

4  

Manju Saini

Tragedy

मन की चिंगारी

मन की चिंगारी

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मन में उठी चिंगारी आखिर क्या कुसूर है

मेरा बेटी होना….?

धधकती चिंगारी रूप लेती है एक विद्रोह का

मेरे मन मे उठते बवंडर को शांत होना है

ये धधकती आग चिंगारी छोड़ देती है मन मे

आखिर कब होना होगा मुझे स्वतंत्र 

जब मैं भी जी पाऊंगी खुल कर जीवन को

चहकती ,मुस्कुराती कब तक रह पाऊंगी 


मन में उठी चिंगारी आखिर क्या कुसूर है

मेरा बेटी होना….?

जीवन रूपी अद्भुत संगीत की स्वरलहरियों में

कब रूप लेंगी ये मेरे जीवन संगीत का

मैं जीवनदायिनी,सृजना, कब तक प्रतीक्षारत

कि मैं भी बेखोफ जी सकूंगी अपनी छोटी सी जिंदगी

आखिर क्यों प्रतिपल एक खोफ साथ चलता है मेरे

अनुभूतियों का स्मरण कर मन द्रवित ही जाता है


मन में उठी चिंगारी आखिर क्या कुसूर है

मेरा बेटी होना….?

मैं स्वयं ही जलती हूँ धधकती हूँ प्रतिदिन 

अंतर्दाह होता है मेरी चेतना में मेरा

मानो अभिशिप्त जीवन मिला हो मुझे

बेटी का रूप देकर मेरे पालनहार ने

मेरी संवेदना मानो अस्तित्व ही नही रखती है

पुरुष को पूर्ण बनाने वाली कैसे मैं अपूर्ण हूँ


मन में उठी चिंगारी आखिर क्या कुसूर है

मेरा बेटी होना….?

अनवरत चल रही हूँ मैं वैसे ही जैसे चलाया पुरुष ने

आखिर क्या नही कर सकती हूँ मैं ..?

मैं स्वयं में समेटे बहुत से प्रश्न लिए आज भी

न जाने कब आखिर कब होगा मेरे जीवन का उदय

कब होगी मेरी भी अपनी पहचान

क्यो निरीह कर छोड़ दिया गया मुझे


मन में उठी चिंगारी आखिर क्या कुसूर है

मेरा बेटी होना….?



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